Sunday, July 10, 2016

Bhagwad Geeta verses that help achieve salvation very fast

श्रीमद्भगवद्गीताका प्रभाव -3-
अब यदि यह पूछा जाय कि गीता में ऐसे कौन-से श्लोक हैं जिनमें से केवल एक को ही काम में लानेपर मनुष्य का कल्याण हो जाय, इसका ठीक-ठीक निश्चय करना बहुत ही कठिन है; क्योंकि गीता के प्राय: सभी श्लोक ज्ञानपूर्ण और कल्याणकारक है | फिर भी सम्पूर्ण गीता में एक तिहाई श्लोक तो ऐसे दीखते है कि जिनमें से एक को भी भलीभाँति समझकर काम में लाने से अर्थात् उसके अनुसार आचरण बनाने से मनुष्य परमपद को प्राप्त कर सकता है | उन श्लोकों की पूर्ण संख्या विस्तारभय से न देकर पाठकों की जानकारी के लिये कतिपय श्लोकों की संख्या नीचे लिखी जाती है-
अ○ २ श्लो○ २०, ७१; अ○ ३ श्लो○ १७-३०; अ○ ४ श्लो○ २०-२७; अ○ ५ श्लो○ १०, १७, १८, २९; अ○ ६ श्लो○ १४, ३०, ३१, ४७; अ○ ७ श्लो○ ७, १४, १९; अ○ ८ श्लो○ ७, १४, २२; अ○ ९ श्लो○ २६, २९, ३२, ३४; अ○ १० श्लो○ ९, ४२; अ○ ११ श्लो○ ५४, ५५; अ○ १२ श्लो○ २, ८, १३, १४; अ○ १३ श्लो○ १५, २४, २५, ३०; अ○ १४ श्लो○ १९, २६; अ○ १५ श्लो○ ५, २५; अ○ १६ श्लो○ १; अ○ १७ श्लो○ १६; और अ○ १८ श्लो○ ४६, ५६, ५७, ६२, ६५, ६६ ।
इस प्रकार उपर्युक्त श्लोकों में से एक श्लोक को भी अच्छी तरह काम में लानेवाला पुरुष मुक्त हो सकता है | जो सम्पूर्ण गीता को अर्थ और भावसहित समझकर श्रद्धा-प्रेम से अध्ययन करता हुआ उसके अनुसार चलता है उसके तो रोम-रोम में गीता ठीक उसी प्रकार रम जाती है जैसे परम भागवत श्रीहनुमानजी के रोम-रोम में ‘राम’ रम गये थे । जिस समय वह पुरुष श्रद्धा और प्रेम से गीता का पाठ करता है उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि मानो उसके रोम-रोम से गीता का सुमधुर संगीत-स्वर प्रतिध्वनित हो रहा है |
जय श्री कृष्ण
'तत्त्वचिन्तामणि' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 683, विषय- श्रीमद्भगवद्गीताका प्रभाव, पृष्ठ-संख्या- २७३, गीताप्रेस गोरखपुर
ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्री जयदयाल जी गोयन्दका सेठजी

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